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वेदव्यास

वेदव्यास की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 153

लोग, लोभ, काम, क्रोध, अज्ञान, हर्ष अथवा बालोचित चपलता के कारण धर्म के विरुद्ध कार्य करते तथा श्रेष्ठ पुरुषों का अपमान कर बैठते हैं।

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जो अधिक धन या अधिक विद्या या अधिक ऐश्वर्य को प्राप्त करके भी गर्वरहित होकर व्यवहार करता है, उसी को पंडित कहा जाता है।

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अकेले स्वादिष्ट भोजन करे, अकेले किसी विषय का निश्चय करे, अकेले रास्ता चले और बहुत से लोग सोए हों तो उनमें अकेला जागता रहे।

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घर आए अतिथि को प्रसन्न दृष्टि से देखे। मन से उसकी सेवा करे। मीठी और सत्य वाणी बोले। जब तक वह रहे उसकी सेवा में लगा रहे और जब वह जाने लगे तो उसके पीछे कुछ तक जाए- यह सब गृहस्थ का पाँच प्रकार की दक्षिणा से युक्त यज्ञ है।

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घर आए व्यक्तियों को प्रेमपूर्ण दृष्टि से देखे, मन से उनके प्रति उत्तम भाव रखे, मीठे वचन बोले तथा उठकर आसन दे। गृहस्थ का सही सनातन धर्म है। अतिथि की अगवानी और यथोचित रीति से आदर सत्कार करे।

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