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सुरेंद्र वर्मा

1941 | झाँसी, उत्तर प्रदेश

सुरेंद्र वर्मा की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 17

दरिद्रता अभिशाप है और वरदान भी। वह व्यक्ति रूप में एक विशिष्ट समय तक तुम्हारा परिसंस्कार करती है—पर यह अवधि दीर्घ नहीं होनी चाहिए।

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असफल कवि सफल शिक्षक नहीं हो सकता।

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कई बार यंत्रणा तर्क के परे होती है।

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जिनके पास साधन होते हैं, उनके पास दृष्टि नहीं होती, जिनके पास दृष्टि होती है—केवल वही होती है, और शून्य होता है।

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रोहिणी को केवल चंद्रमा ही चाहिए।

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