सुमित्रानंदन पंत के लेख
जीवन के अनुभव और उपलब्धियाँ
हम एक ऐसे महान् युग में पैदा हुए हैं, और इसमें ऐसी महत्त्वपूर्ण क्रांतियाँ और परिवर्तन, मानव जीवन के बाहरी-भीतरी क्षेत्रों में आज उपस्थित हो रहे हैं कि साधारण से साधारण मनुष्य का जीवन भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। एक युगजीवी की तरह मेरे
संतुलन का प्रश्न
विचारकों की दृष्टि में हमारा युग एक महान् परिवर्तन तथा संक्रमण का युग है, जिसमें, न्यूनाधिक मात्रा में, संघर्षों तथा संकटों का आना अनिवार्य है। ऐसे संधिकाल में यदि हमारे चिंतकों का ध्यान मौलिक मानव-मूल्यों की ओर आकर्षित हो रहा है तो यह स्वाभाविक ही है।
मेरी मनोकामना का भारत
मेरी मनोकामना का भारत! मन में प्रश्न उठता है, क्या हम आज सचमुच भारत के रूप में, भारत ही के लिए सोचते हैं? क्या आज मानव-मन देश-देशांतर के अंतराल को अतिक्रम नहीं कर चुका है? क्या आज एक विश्व-जीवन, एक भू-जीवन अथवा एक मानवता की सुनहली कल्पना हमारे मन में
मेरी सर्वप्रिय पुस्तक
कहते हैं इस युग में मनुष्य का जितना ज्ञान वर्द्धन हुआ है, सभ्यता के इतिहास में उतना ज्ञान मनुष्य ने और कभी अर्जित नहीं किया। ऐसे युग में मनुष्य लाख प्रकृति का प्रेमी हो और उसे पाषाण-शिलाओं, नदियों तथा प्रकृति के अन्य उपकरणों में चाहें कितने ही प्रवचन
छंद नाट्य
इन दिनों हम रेडियो नाटकों एवं रूपकों के संबंध में परामर्श करते रहें हैं। रेडियो नाटक के विकास, उसके प्रकार, उसकी आवश्यकताओं आदि अनेक उपयोगी विषयों पर हम चर्चा कर चुके हैं। मैं आपसे, संक्षेप में, छंद-नाट्य या पद्य नाट्य के बारे में कुछ कहना चाहूँगा, जिससे