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भरतपुर नरेश सुजानसिंह के आश्रित कवि। काव्य में वर्णन-विस्तार और शब्दनाद के लिए स्मरणीय।

भरतपुर नरेश सुजानसिंह के आश्रित कवि। काव्य में वर्णन-विस्तार और शब्दनाद के लिए स्मरणीय।

सूदन का परिचय

सूदन ने ‘सुजान-चरित’ में अपना परिचय इस प्रकार दिया है—
“मथुरा पुर सुभ-धाम, मथुरा कुल उतपत्ति वर।
पिता बसंत सुनाम, सूदन जानहु सकल कवि॥”
अर्थात् सूदन मथुरा निवासी माथुर चौबे थे। इनके पिता का नाम बसंत था। भरतपुराधीश बदनसिंह के पुत्र महाराज सुजान सिंह (सूरजमल) इनके आश्रयदाता थे। सूदन ने सूरजमल की प्रशंसा में ‘सुजान चरित’ नामक प्रबंध काव्य की रचना की है। इसमें सुजान सिंह के जीवन की 1745 ई. से 1753 ई. तक की घटनाओं का वर्णन है, अतः इसके आधार पर सूदन के विद्यमान होने और रचनाकाल का अनुमान लगाया जा सकता है।

‘सुजान चरित’ बहुत बड़ा ग्रंथ है राजा सूरजमल की जो वीरता की घटनाएँ कवि ने वर्णित की हैं, वे कपोलकल्पित नहीं, बल्कि ऐतिहासिक हैं। इसलिए ‘सुजान चरित’ का ऐतिहासिक महत्त्व भी बहुत है। इस काव्य के संबंध में सबसे पहली बात जिस पर ध्यान जाता है वह वर्णनों का अत्यधिक विस्तार और प्रचुरता है। वस्तुओं के ब्योरों से पाठक को अरुचि हो जाती है, इतने ब्योरे इन्होने दिये हैं। कहीं घोड़ों की जातियों के नाम गिनाते चले गए हैं, कहीं वस्त्रों की सूची देते गए हैं। भिन्न-भिन्न भाषाओं, बोलियों को लेकर कहीं-कहीं इन्होंने पूरा खेलवाड़ किया है। उदात्त चरित्र में जो गांभीर्य होना चाहिए था, वह इनमें नहीं पाया जाता। प्रगल्भता और प्रचुरता का प्रदर्शन सीमा का अतिक्रमण कर जाने के कारण जगह-जगह खटकता है। भाषा के साथ भी सूदन ने पूरी मनमानी की है। कितनी ही बोलियों का मनचाहा प्रयोग ‘सुजान चरित’ में मिलता है। इसके अलावा न जाने कितने शब्द तोड़े-मरोड़े और गढ़े गए हैं। जो स्थल इन प्रयोगों से अछूते हैं, वे निश्चित ही मनोरम बन पड़े हैं। पर अधिकतर शब्दों की तड़ातड़ भड़ाभड़ से जी ऊबने लगता है। युद्ध विषयक कथानक है इसलिए अध्यायों का नाम ‘जंग’ रखा गया है. पूरे ग्रंथ में सात ‘जंग’ हैं।

अपनी इस रचना के आधार पर सूदन वीर-काव्य-धारा के प्रमुख कवियों में माने जाते हैं और इनकी रचना का साहित्यिक तथा ऐतिहासिक दोनों दृष्टियों से महत्त्व स्वीकार किया जाता है।

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