समय : 13वीं सदी। जैनाचार्य। गद्य-पद्यमय संस्कृत-प्राकृत काव्य ‘कुमारपाल प्रतिबोध’ के रचयिता।
माणि पणट्ठइ जइ न तणु, तो देसडा चइज्ज।
मा दुज्जन-कर-पल्लविहिँ, दंसिज्जंतु भमिज्ज॥
वेस विसिट्ठह वारिअइ, जइ वि मणोहर-गत्त।
गंगाजल-पक्खालिअवि, सुणिहि कि होइ पवित्त॥
रिद्धि विहूणइ माणुसह न कुणइ कुवि संमाणु।
सउणिहि मुच्चउ फल रहिउ तरुवरु इत्थु पमाणु॥
चूडउ चुन्नी होइसइ मुद्धि कवोलि निहत्तु।
सासानलिण झलक्कियउं वाह-सलि-संसित्तु॥
पिउ हउं थक्किय सयलु दिणु तुह विरहरग्गि किलंत।
थोडइ जलि जिम मच्छलिय तल्लोविल्लि करंत॥
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