मुबारक के दोहे
गोरे मुख पर तिल लसे ताहि करौ परनाम।
मानहु चंद बिछाइकै बैठे सालिगराम॥
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गोरे मुख पर तिल लसत मेटत है दुख द्वंद।
मानहु बेटा भानु को रह्यो गोद लै चंद॥
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तिय निहात जल अलक ते, चुवत नयन की कोर।
मनु खंजन मुख देत अहि, अमृत पोंछि निचोर॥
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विधि कपोल टिकिया करी, तहँ तिल धरो बनाय।
यह मन छधित फकीर ज्यों, रहैं टकटकी लाय॥
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छूटो चंदन भाल तें, अलक ऊपर छबि देत।
डसी उलटि मनु नागिनी उदर बिराजत सेत॥
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तिय नहात जल अलक ते चुअत नयन की कोर।
मनु खंजन मुख देत अहि अमृत पोंछि निचोर॥
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तेरे मुख कौ देख ससि कारिस लई लगाय।
नाम कलंकी ह्वै गयो घटै बढ़ै पछताए॥
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छत्र तरयोना लट चमर गाल सिंहासन राज।
सोहत तिल राजाधि सम अंग सुदेसर साज॥
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बदन चंद मंगल अधर बुध बानी गुरु अंग।
सुक्र दसन तिल सनि लसे अंबर पिय रवि संग॥
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बेसरि मोती मीत मन काँप दियो लटकाय।
तिल हबसी लट ताजियो कहै अनत क्यों जाय॥
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अलक भाल केसरि सनी घूंघट हरित सोहात।
मनु पुर इन के पात पर उरग सारदू न्हात॥
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निछुटो टीको भाल तें अटक्यो लट के छोर।
मनो फिरावत मोहियो चंद लए चक डोर॥
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चिबुक कूप में मन फँस्यो, छबि जल तृषा बिचारी।
कढ़त मुबारक ताहि तिय अलक डोर सो डारि॥
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चिबुक रूप रसरी अलक तिल सुचरस दृग बैल।
बारी बार सिंगार की सींचत मन मथ छैल॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere