महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध
अलौकिक शिशु-गायक मास्टर मदन
जो लोग जन्म-परंपरा को नहीं मानते—जो लोग इस बात पर विश्वास नहीं करते कि पूर्व-जन्म के संस्कार बीज रूप से बने रहते हैं और समुचित उत्तेजना पाते ही फूलने और फलने लगते हैं—उन्हें मास्टर मदन को देखना चाहिए, उसका गाना सुनना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि इस शिशु
कवियों की उर्मिला-विषयक उदासीनता
कवि स्वभाव ही से उच्छृंखल होते हैं। वे जिस तरफ़ झुक गए। जी में आया तो राई का पर्वत कर दिया; जी में न आया तो हिमालय की तरफ़ भी आँख उठाकर न देखा। यह उच्छृंखलता या उदासीनता सर्वसाधारण कवियों में तो देखी ही जाती है, आदि कवि भी इससे नहीं बचे। क्रौंच पक्षी
क्रोध
याद रखिए, क्रोध से और विवेक से शत्रुता है। क्रोध विवेक का पूरा शत्रु है। क्रोध एक प्रकार की प्रचंड आँधी है। जब क्रोध रूपी आँधी आती है, तब दूसरे की बात नहीं सुनाई पड़ती। उस समय कोई चाहे कुछ भी कहे, सब व्यर्थ जाता है। आँधी में भी किसी की बात नहीं सुन पड़ती।
लोभ
मनुष्य लोभ बहुत बुरा है। वह मनुष्य का जीवन दुखमय कर देता है; क्योंकि अधिक धनी होने से कोई सुखी नहीं होता। धन देने से सुख नहीं मोल मिलता। इसलिए जो सोने और चाँदी के ढेर ही को सब कुछ समझता है, वह मूर्ख है। मूर्ख नहीं, तो वह वृथा अहंकारी अवश्य है। जो बहुत
स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन
बड़े शोक की बात है, आजकल भी ऐसे लोग विद्यमान हैं जो स्त्रियों को पढ़ाना उनके और गृह-सुख के नाश का कारण समझते हैं। और लोग भी ऐसे वैसे नहीं, सुशिक्षित लोग—ऐसे लोग जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूलों और शायद कॉलेजों में भी शिक्षा पाई है, जो धर्मशास्त्र और संस्कृत
भारत की चित्र-विद्या
प्राचीन भारत ने जैसे और अनेक विषयों में ऊँचे दरजे की उन्नति की थी वैसे ही मूर्ति-निर्माण और चित्र-विद्या में भी की थी। इस देश की यद्यपि हज़ारों उत्तमोत्तम मूर्तियाँ विधर्म्मी आक्रमणकारियों की तलवारों और हथौड़ों की निर्दय चोटों से नष्ट भ्रष्ट हो गईं तथापि
कवि और कविता
यह बात सिद्ध समझी गई है कि कविता अभ्यास से नहीं आती। जिसमें कविता करने का स्वाभाविक माद्दा होता है वही कविता कर सकता है। देखा गया है कि जिस विषय पर बड़े-बड़े विद्वान अच्छी कविता नहीं कर सकते उसी पर अपढ़ और कम उम्र के लड़के कभी-कभी अच्छी कविता लिख
सेठ खेमराज श्रीकृष्णदास
बंबई के प्रसिद्ध व्यवसायी सेठ खेमराज श्रीकृष्णदास का गत 30 जुलाई की, 64 वर्ष की अवस्था में देहावसान हो गया। हिंदी और संस्कृत के धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन करके आपने अक्षय कीर्ति प्राप्त की। हिंदी भाषा-भाषी भी तो आपके सदैव उपकृत रहेंगे। आपके ही हिंदी-प्रेम
भारतीय चित्रकला
कविता, संगीत, चित्रकला और मूर्ति-निर्माण-विद्या की गिनती ललित कलाओं में है। असभ्य, अशिक्षित और असंस्कृत देशों में इन कलाओं का उत्थान नहीं होता। जिन कृतविद्य और शिक्षा-संपन्न देशों के निवासियों के हृदय, मानवीय विकारों के अनुभव से, संस्कृत और सुपरिमार्जित
लेखकों से प्रार्थना
'सरस्वती' किसी व्यक्ति-विशेष या किसी एक समुदाय को प्रसन्न करने के लिए नहीं। उसके जितने ग्राहक हैं, यथाशक्ति सबको प्रसन्न रखने और सबको लाभ पहुँचाने के लिए वह प्रकाशित होती है। जिस लेख या कविता से इस उद्देश्य की सिद्धि हो सकती है उसी को सरस्वती में
संपादकों के लिए स्कूल
कुछ दिन हुए अख़बारों में यह चर्चा हुई थी कि अमेरिका में संपादकों के लिए स्कूल खुलने वाला है। इस स्कूल का बनना शुरू हो गया और इस वर्ष इसकी इमारत तो पूरी हो जाएगी। आशा है कि स्कूल इसी वर्ष जारी भी हो जाए। अमेरिका के न्यू प्रांत में कोलंबिया नामक एक विश्वविद्यालय
देशी भाषाओं में शिक्षा
बात 20 जनवरी को इन प्रांतों की काउंसिल की बैठक में एक मेंबर ने गवर्नमेंट से पूछा कि देशी भाषाओं में कुछ अधिक शिक्षा देने के विषय में क्या हो रहा है। उत्तर में गवर्नमेंट और ने यह सब पत्र-व्यवहार दिखा दिया जो तब तक उससे और शिक्षा-विभाग के डायरेक्टरों से
क्या हिंदी नाम की कोई भाषा ही नहीं?
जी हाँ, इस नाम की कोई भाषा नहीं। कम से कम संयुक्त प्रांतों में तो इसका कहीं पता नहीं ! ऑनरेबल असग़र अली ख़ाँ, ख़ान बहादुर, की यही राय है। प्रमाण? इसकी क्या ज़रूरत? ख़ान बहादुर का कहना ही काफ़ी प्रमाण है! प्रारंभिक शिक्षा-कमिटी ने रीडरों की भाषा के
समाचार-पत्रों का विराट् रूप
हे विराद् स्वरूपिन् समाचार-पत्र! आप सर्वांतर्यामी साक्षात् नारायण हैं। वृत्तपत्र, वर्तमान पत्र, समाचार-पत्र, गैजट, अख़बार आपके अनेक नाम और रूप है। अतः "अनेकरूपरूपाय विष्णवे प्रभविष्णवे"—आपको प्रणाम। 2—पत्र-व्यवहार अथवा चिट्ठी-पत्री आपके पादस्थान में