महापात्र नरहरि बंदीजन के दोहे
नरहरि जप तप नेम व्रत सबु सबही ते होइ।
प्रीति निबाहन एक रस, नहिं समरथ कलि कोइ॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere