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मधुसूदन सरस्वती

1540 - 1640

मधुसूदन सरस्वती के उद्धरण

भगवान् स्वयं परमानंद-स्वरूप हैं अतः जब वे मन में प्रवेश कर जाते हैं, तब वह मन पूर्ण रूप से भगवान् के आकार का होकर रसमय बन जाता है।

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