1945 | नालंदा, बिहार
सुनहरे परिंदों के ख़ूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की ख़ामोश वादी की तरफ़ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है।इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफ़र का बोझ उठाए। लेकिन यह सफ़र
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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