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Gayaprasad Shukla 'Sanehi''s Photo'

गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

1883 - 1972 | उन्नाव, उत्तर प्रदेश

द्विवेदी युग के कवि। राष्ट्रप्रेम की कविताओं के लिए प्रसिद्ध।

द्विवेदी युग के कवि। राष्ट्रप्रेम की कविताओं के लिए प्रसिद्ध।

गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' का परिचय

 

द्विवेदीयुगीन प्रमुख कवि गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' का जन्म 21 अगस्त 1883 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के हड़हा गाँव में हुआ था। बचपन में उर्दू-फ़ारसी का अध्ययन किया और 1898 में मिडिल स्कूल पास कर अध्यापन कार्य में लग गए। अध्यापन का पेशा 1921 में असहयोग आंदोलन के समय त्याग दिया और कानपूर में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादन से संबद्ध हुए।

वह बाल्यकाल से ही कविता-लेखन की ओर प्रवृत्त होने लगे थे। दिलचस्प है कि काव्य-कर्म के लिए उन्होंने अपने चार साहित्यिक उपनाम बना रखे थे। 'सनेही' उपनाम से कोमल भावनाओं की कविताएँ, 'त्रिशूल' उपनाम से राष्ट्रीय कविताएँ तथा 'तरंगी' एवं 'अलमस्त' उपनाम से हास्य-व्यंग्य की कविताएँ लिखते थे। कहा जाता है कि तब ‘त्रिशूल’ नामक कवि की तलाश में अँग्रेज़ी हुकूमत ने बड़े प्रयास किए थे। वह देशभक्ति और जन-जागरण की कविताओं के लिए प्रसिद्ध और लोकप्रिय रहे। उनकी 'स्वदेश' शीर्षक कविता का यह छंद-बंध आज भी विशेषतः स्कूली बच्चों के बीच लोकप्रिय बना हुआ है—

जो भरा नहीं है भावों से,
बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

‘प्रेम पचीसी’, ‘गप्पाष्टक’, ‘कुसुमांजलि’, ‘कृषक-क्रंदन’, ‘त्रिशूल तरंग’, ‘राष्ट्रीय मंत्र’, ‘संजीवनी’, ‘राष्ट्रीय वीणा’, ‘कलाम-ए-त्रिशूल’, ‘करुणा कादंबनी’ आदि उनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। उनकी उपलब्ध समग्र रचनाओं का संकलन हिंदी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद से प्रकाशित है। लेखन के साथ ही वह कविताओं की मंचीय प्रस्तुति में अत्यंत सक्रिय रहे और अखिल भारतीय स्तर के सैकड़ों कवि-सम्मेलनों में शिरकत किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘वर्तमान’, ‘कवि’ और ‘सुकवि’ साहित्यिक पत्रों के संपादन में अपना योगदान दिया। 

वह 'साहित्य-सितारेंदु', 'साहित्य-वारिधि', 'साहित्य-वाचस्पति' आदि उपाधियों से विभूषित किए गए थे।

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