गवरी बाई के दोहे
बन में गये हरि ना मिले, नरत करी नेहाल।
बन में तो भूंकते फिरे, मृग, रोझ, सीयाल॥
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छापा तिलक बनाय के, परधन की करें आसा।
आत्मतत्व जान्या नहीं, इंद्री-रस में माता॥
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गवरी चित्त तो है भला, जो चेते चित मांय।
मनसा, वाचा, कर्मणा, गोविंद का गुन गाय॥
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अड़सठ तीरथ में फिरे, कोई बधारे बाल।
हिरदा शुद्ध किया बिना, मिले न श्री गोपाल॥
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बावन अक्षर बाहिरो, पहुँचे ना मति दास।
सतगुरु की किरपा भये, हरि पेखे पूरन पास॥
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संबंधित विषय : गुरु
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साखी आँखी ज्ञान की, समुझि देख मन मांहि।
बिनु साखी संसार का, झगड़ा छूटत नाँहि॥
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गवरी चित में चेतिऐ, लालच लोभ निवार।
सील संतोष समता ग्रहे, हरि उतारे पार॥
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संबंधित विषय : नीति
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दरी में तो बहू दिन बसे, अहि उंदर परमान।
दरी समारे न मिले, सुनियो संत सुजान॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere