सरला: एक विधवा की आत्मजीवनी
'दिल जले है ग़म से औ, आँसू बहाना मना है।
आग घर में लग रही है औ, बुझाना मना है।
है जिगर में शोला औ' नालः उठाना मना है।
चाक पर है चाक औ' मरहम लगाना मना है।'
याद नहीं किंतु सोचने से एक धुँधला चित्र दिखाई दे जाता है। उस समय अवस्था मेरी बहुत कम थी। सुनती