धरनीदास के दोहे
जाहि परो दुख आपनो, सो जानै पर पीर।
धरनी कहत सुन्यो नहीं, बाँझ की छाती छीर॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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