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धरनीदास

1656 | छपरा, बिहार

भक्तिकाल के संत कवि। आत्महीनता, नाम स्मरण, विनय और आध्यात्मिक विषयों पर कविताई की। 'निज' की पहचान पर विशेष बल दिया।

भक्तिकाल के संत कवि। आत्महीनता, नाम स्मरण, विनय और आध्यात्मिक विषयों पर कविताई की। 'निज' की पहचान पर विशेष बल दिया।

धरनीदास के दोहे

जाहि परो दुख आपनो, सो जानै पर पीर।

धरनी कहत सुन्यो नहीं, बाँझ की छाती छीर॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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