देवादास के दोहे
रसना सुमिरे राम कूँ, तो कर्म होइ सब नास।
'देवादास' ऐसी करै, तो पावै सुक्ख बिलास॥
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तिरे, तिरावै, फिर तिरे, तिरताँ लगै न बार।
देवादास रटि राम कूँ, बहुत ऊतर्या पार॥
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जल तिरबे को तूँ बड़ा, भौ तिरबे कूँ राम।
'देवादास' सब संत कह, सुमरो आठूँ जाम॥
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देवादास कह सुरत सों, वै मूरख बड़ा अग्यान।
पगथ्या पाड़या हाथ सूँ, करै महल को ध्यान॥
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संबंधित विषय : नीति
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ररा ममा को ध्यान धरि, यही उचारै ग्यान।
दुविध्या तिमिर सहजैं मिटै, उदय भक्ति को भान॥
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देवा उलटी बात की, संत जाणत हैं रीत।
जागत सुमिरै राम कूँ, सूता अधिकी प्रीत॥
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करणी सूँ कृपा करै, कृपा करणी माँय।
'देवादास' कृपा बिना, करणी होती नाँय॥
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देवादास कृपाल की, कृपा सब पर जोहि।
करणी कर करुणा करै, ता पर राजी होहि॥
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देवा रसना गहलैं चालि कै, हृदय सूरति नाम।
राह बतावै और कूँ, आगे किया मुकाम॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere