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चाणक्य

चाणक्य की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 26

जैसा अन्न खाया जाता है, वैसी ही प्रजा होती है। दीपक अँधेरे को खाता है और काजल को उत्पन्न करता है।

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शास्त्र अनेक हैं, विद्याएँ भी बहुत हैं, समय थोड़ा है, विघ्न भी बहुत हैं। अतएव जैसे हंस जल-मिश्रित दूध में से दूध को ले लेता है, उसी प्रकार जो कुछ सारभूत हो, उसी को ग्रहण कर लेना चाहिए।

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अग्नि से जलते हुए एक ही सूखे वृक्ष से समस्त वन इस प्रकार जल जाता है जैसे एक ही कुपुत्र से संपूर्ण कुल।

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शत्रु का भी अच्छा गुण ग्रहण करने योग्य होता है।

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सोते हुए इन सात प्राणियों को जगा देना उचित है—विद्यार्थी, सेवक, यात्री, भूखा, भयभीत, भांडार-अधिकारी और द्वारपाल। सोए हुए इन सात प्राणियों को जगा देना उचित नहीं है—सर्प, राजा, सिंह, सुअर, बालक, पराया कुत्ता और मूर्ख।

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