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भारतेंदु हरिश्चंद्र

1850 - 1885 | वाराणसी, उत्तर प्रदेश

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत। समादृत कवि, निबंधकार, अनुवादक और नाटककार।

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत। समादृत कवि, निबंधकार, अनुवादक और नाटककार।

भारतेंदु हरिश्चंद्र के दोहे

प्रेम प्रेम सब ही कहत प्रेम जान्यौ कोय।

जो पै जानहि प्रेम तो मरै जगत क्यों रोय॥

लोक-लाज की गांठरी पहिले देइ डुबाय।

प्रेम-सरोवर पंथ में पाछें राखै पाय॥

प्रेम सकल श्रुति-सार है प्रेम सकल स्मृति-मूल।

प्रेम पुरान-प्रमाण है कोउ प्रेम के तूल॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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