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बलभद्र मिश्र

1543 | ओरछा, मध्य प्रदेश

भक्तिकालीन रीति कवि। प्रौढ़ और परिमार्जित काव्य-भाषा और नायिका भेद के लिए प्रसिद्ध।

भक्तिकालीन रीति कवि। प्रौढ़ और परिमार्जित काव्य-भाषा और नायिका भेद के लिए प्रसिद्ध।

बलभद्र मिश्र का परिचय

यद्यपि बलभद्र के विषय में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं होती, फिर भी उनकी जीवनी-विषयक वंश-परिवार, जन्म तिथि, निवास स्थान, रचना-काल आदि बातों की जो भी सूचनाएँ प्राप्त होती हैं, वे संदेह से परे हैं और उनमें गुत्थियाँ लगभग नहीं हैं। अंतःसाक्ष्य के रूप में प्राचीन एवं अधिकांश मध्यकालीन कवियों की जीवनी-विषयक सूचनाएँ प्राप्त ही नहीं होती; और जो होती हैं, वे भी अत्यल्प मात्रा में ही। फलतः इन कवियों की प्रामाणिक जीवनी उपलब्ध करना टेढ़ी खीर हो जाती है! बलभद्र के विषय में तथ्य यह है कि अंतःसाक्ष्य के रूप में उनके दो-एक ग्रंथ ही उपलब्ध हैं। इनमें कहीं भी कवि के जीवन वृत्तांत की आंशिक सूचना तक प्राप्त नहीं होती। अतः इस विषय में बहिर्साक्ष्य का ही सहारा लेना पड़ता है।

बहिर्साक्ष्य के रूप में सबसे अधिक प्रामाणिक जानकारी केशवदास के 'कविप्रिया' ग्रंथ में प्राप्त होती है जिसमें कवि ने अपने विषय में परिचय देते हुए न केवल बलभद्र के अपने बड़े भाई होने की बात कही है, अपितु विस्तृत वंश परिचय के साथ ही जीवनी-विषयक कई अन्य महत्त्वपूर्ण बातों की ओर भी निर्देश किया है। उनके 'रामचंद्रिका' तथा 'विज्ञानगीता' ग्रंथों में भी जीवनी-विषयक उल्लेख प्राप्त होते हैं। इनमें से बहुत-सी सूचनाएँ समान रूप में बलभद्र के लिए भी असंदिग्धतया स्वीकृत की जा सकती हैं।

'नखशिख' एवं 'रसविलास' के रचयिता बलभद्र मिश्र रीतिकाल के सुविख्यात आचार्य केशवदास के बड़े भाई हैं। जैसा कि ऊपर कहा गया है, केशवदास ने अपने ग्रंथ 'कविप्रिया' (दूसरा प्रभाव) में इनका उल्लेख किया है, अतः इस संबंध में संदेह के लिए कोई स्थान ही नहीं रह जाता। ‘हस्तलिखित हिंदी ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण' (भाग १) ग्रंथ में 'बलभद्र' नाम से और तीन कवियों का निर्देश पाया जाता है जिनका परिचय इस प्रकार दिया गया है :
1. बलभद्र : क्षत्रिय। केशवदास के पुत्र। सं. १६६५ के लगभग वर्तमान। 'वैद्यविद्या विनोद' (पद्य) ।
2. बलभद्र : 'षट् नारी षट् वर्णन' (पद्य) ।
3. बलभद्र : जयकृष्ण कवि कृत 'कवित्त' नामक ग्रंथ में इनकी रचनाएँ संगृहीत हैं।

उपर्युक्त तीनों कवि निःसंदेह 'सिखनख' के रचयिता बलभद्र मिश्र से भिन्न हैं। क्योंकि प्रथम बलभद्र तो क्षत्रिय हैं, जबकि बलभद्र मिश्र सनाढ्य ब्राह्मण हैं और केशवदास से इनका रिश्ता पिता-पुत्र का नहीं, अग्रज अनुज का है। शेष दो का न तो जन्म संवत् ही दिया गया है, न कोई अन्य जानकारी। अन्य किसी ग्रंथ में भी इनका निर्देश नहीं है, अतः इनका व्यक्तित्व संदिग्ध है।

केशवदास के ग्रंथों में प्राप्त सूचनाओं के अनुसार बलभद्र कवि कृष्णदत्त मिश्र के पौत्र और पं. काशीनाथ मिश्र के पुत्र तथा केशवदास के बड़े भाई थे। कल्याणदास नाम का उनका एक छोटा भाई भी था। शिवसिंह सेंगर ने इन्हें सनाढ्य मिश्र बुंदेलखंडी कहा है। जॉर्ज ग्रियर्सन ने भी इसकी पुष्टि की है। बलभद्र के वंश की वृत्ति पुराणकार की थी। स्वयं बलभद्र मिश्र बालकपन से ही ओरछा के नरेश रुद्रप्रताप के पुत्र मधुकर शाह को पुराण सुनाया करते थे। बलभद्र के वंश में संस्कृत की पांडित्य परंपरा वर्षों से चली आई थी। उनके पितामह पं. कृष्णदत्त मिश्र संस्कृत के प्रसिद्ध नाटक 'प्रबोध-चन्द्रोदय' के रचयिता थे। उनके पिता पं० काशीनाथ भी संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध विद्वान् थे। पैतृक दाय के रूप में यही विद्वत्ता बलभद्र को भी प्राप्त थी। बेतवा नदी के तट पर स्थित ओरछा नगर इस वंश का निवास स्थान था। 'भारत जीवन प्रेस', काशी में मुद्रित बलभद्र कृत 'सिखनख' ग्रंथ के अंत में "इति श्री ओड़छा नगर निवास द्विज-कुल मुकुट माणिक्य मिश्रोपनामक सुकवि शिरोमणि बलभद्र कविकृत 'सिखनख' संपूर्णम्" लिखा गया है- इससे बलभद्र का 'ओरछा नगर निवासी' होना प्रमाणित हो जाता है।

बलभद्र मिश्र के जन्म संवत् के विषय में सभी विद्वानों में सहमति है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनका जन्म वि. सं. 1600 (1543 ई.) के लगभग माना है। अन्य विद्वानों ने इसी तिथि को निर्विवाद रूप में स्वीकार किया है। इनकी अवसान-तिथि के विषय में कहीं कोई निर्देश नहीं मिलता। ओरछा नरेश मधुकरशाह बलभद्र के संभवतः एकमात्र आश्रयदाता थे जिनको ये बालकपन से ही पुराण की कथाएँ सुनाया करते थे। इनके अन्य आश्रयदाताओं के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

बलभद्र की उपलब्ध रचनाओं में कहीं भी कृतित्व काल का संकेत नहीं पाया जाता। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार इनका रचनाकाल 1640 वि. सं. (1583 ई.) के पहले माना गया है। इस तिथि का अन्य किसी विद्वान् द्वारा खंडन नहीं किया गया है। किन्तु निश्चित तिथि अज्ञात ही है। बलभद्र के नाम पर 'गोवर्द्धन सतसई की टीका', 'हनुमन्नाटक का अनुवाद', 'बलभद्री व्याकरण', 'दूषण-विचार', 'भागवत भाष्य', 'सिखनख' या 'सिखनख शृंगार’ और 'रस-विलास' नामक ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में से प्रथम तीन ग्रंथों की सूचना गोपाल कवि के द्वारा प्राप्त हुई। इन्होंने 1834 ई. में बलभद्र कृत 'सिखनख' की टीका 'सिखनख दर्पण' नाम से लिखी थी जिसमें उक्त तीन ग्रंथों का उल्लेख उन्होंने किया है। किन्तु इन ग्रंथों की प्रामाणिकता संदिग्ध है, ये ग्रंथ उपलब्ध भी नहीं हैं। आचार्य शुक्ल ने खोज में प्राप्त ग्रंथ के रूप में 'दूषण-विचार' का उल्लेख किया है जिसमें काव्य के दोषों का निरूपण है।

पं. रामनरेश त्रिपाठी ने 'रस-विलास' को छोड़कर पूर्वोक्त सभी ग्रंथों का उल्लेख किया है। 'भागवत भाष्य' ग्रंथ की सूचना भी उन्हीं के द्वारा प्राप्त होती है जो हरिऔध के अतिरिक्त अन्य किसी विद्वान् द्वारा समर्थित नहीं है। यह ग्रंथ उपलब्ध भी नहीं है, अतः इसकी प्रामाणिकता संदिग्ध प्रतीत होती है। किन्तु बलभद्र संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध विद्वान् भी थे, अतः 'भागवत-भाष्य' आदि दूसरी रचनाओं की रचना भी असंभव नहीं मानी जा सकती।

बलभद्र की उपलब्ध प्रामाणिक रचनाएँ 'सिखनख' या 'सिखनख-शृंगार', 'रस-विलास' और 'दूषण-विचार' हैं। इनका 'सिखनख' ग्रंथ विशेष रूप में प्रसिद्ध रहा है। इसमें कवि ने नायिका के अंग-प्रत्यंगों का आलंकारिक शैली में वर्णन किया है। 'रस-विलास' में रसों का वर्णन अपने ढंग का है। स्वयं बलभद्र मिश्र ने इसे महाकाव्य के नाम से संबोधित किया है। इसमें रस का स्वतंत्र वर्णन नहीं है, केवल संचारी और स्थायी भावों का ही वर्णन किया गया है, किन्तु इन वर्णनों के अनेक उदाहरण रसपूर्ण हैं। इनके काव्य में भाषा पर इनका अधिकार और पांडित्य प्रत्यक्ष रूप में झलकता है। ‘दूषण-विचार' में काव्य के दोषों की चर्चा की गई है।

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