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पद

पद छंद की ही एक विधा है। छंदों में मात्राओं या वर्णों की संख्या या क्रम निश्चित होते हैं, जबकि पद वर्णों या मात्राओं की गणना से मुक्त होता है। तुकांतता के निर्वाह से पद गेय होते हैं, इसलिए प्राचीन कवियों ने पदों पर शीर्षक के रूप में प्रायः रागों के नाम ही दिए हैं। पदों की परंपरा हिंदी साहित्य में विद्यापति से शुरू हुई जो भक्तिकाव्य से होती हुई छायावाद में महादेवी वर्मा तक निर्बाध चलती रही।

पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। गोस्वामी विट्ठलदास के शिष्य। पदों के शिल्प-वैशिष्ट्य के कारण प्रसिद्ध।

अजमेर के राजा विग्रहराज चतुर्थ के राजकवि। वीरगीत के रूप में सबसे पहली कृति 'बीसलदेव रासो' के रचयिता।

1699 -1764

किशनगढ़ (राजस्थान) नरेश। प्रेम, भक्ति और वैराग्य की साथ नखशिख की सरस रचनाओं के लिए ख्यात।

भक्तिकाल। रामभक्त कवि। अग्रदास के शिष्य। 'भक्तमाल' ग्रंथ कीर्ति का आधार ग्रंथ।

1828 -1900

कृष्ण-भक्ति के संत कवि। सुकोमल भाषा और विलक्षण भाव-वर्णन के लिए स्मरणीय।

1623 -1698

नाथ परंपरा के कवि। चर्पटनाथ के शिष्य। असार संसार में लिप्त जीवों की त्रासदी के सजीव वर्णन के लिए स्मरणीय।

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