जो कोई जात हुवै जसनाथी
jo koi jat huwai jasnathi
जो कोई जात हुवै जसनाथी, उत्तम करणी हालो आछी।
राह चलो अपणा ध्रम रख, भूख मरो पण जीव न भख।
उत्तम केस रखावो आच्छा, पैलां नीर अधारा पाछा।
सिदकशील, संतोष सबुरी सूरत, सो मानो भगवानी मूरत,
होम जोत भगवानी मूरत।
दावो देव नहीं कोई दूजो, जोत सरूपी प्रगट पूजो।
अतरा काम सबही कीज्यो, ओठ विसंनर फूंक न दीज्यो।
जल दूधो तो छाण्यो पीज्यो, देह भोम समाधपो लीज्यो।
मोख मुगत रा मारग जोवो, किन्या दरब न व्याज विसोवो।
वित्त सारूं ही विसवंत बांटो, काया लगे नहीं कीड़ो कांटो।
अतरा ले हर दरगा आणी, पंथ बतावै जसनाथजी जाणी।
मुरख हुंता पिंडत किया, ई करणी गत लाधै मुवा।
कुबध्यां निन्दा न आणो नैड़ी, गुरु प्रसादे गोरख वचने,
(श्रीदेव) जसनाथ (जी) कैवै, इण पंथ चढ़ो अगम री पेड़ी।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 174)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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