जतसत रहणा कूड़ न कहणा
jatsat rah.na.a kuuD n kah.na.a
जतसत रहणा कूड़ न कहणा, जोग तणी सहनाणी।
अमी चवै मुख इमरत बोलो, हालो गुरु फरमाणी
मन कर लेखण तन कर पोथी, हरगुण लिखो पिराणी।
गाय’र गाडर भैंस’र छाळी, गळबो काट न खाणी।
सिरज्या देव अमी रा कूंपा, दुय दुय पिवो पिराणी।
जे गळ काट्यां हुवै भलेरो, अपरो काट पिराणी।
कांटो भागां थरहर कांपो, राखो जीव अमाणी।
आप रो जीव खरो पियारो, पर जीवां ऊं जाणी।
बळि बाकळ भैरूं री पूजा, गोरख मना न भाणी।
कुंडा धोवै करद पलारै, रगत करै महमाणी।
से नर जाणै सुरगे जास्यां, कोरा रैया अयाणी।
खोटांनै जमदूत धवैला, भाड़ा धवै ज्यूं धाणी।
लोहापांगळ भरमे भूला, जोग जुगत न जाणी।
कामड़ियां री पाटी पढ़ग्या, सेवो मड़ा मसाणी।
या करणी सूं नरकां जासो, हुवो प्रेत पिराणी।
साधु हीर (हिंवर) हिंडोळे हीडै, पूतां सुरग विवाणी।
साधांनै इंद लोके वासो, देव तणी देवाणी।
भूखांनै गुरु भोजन मेलै, तिसियां पावै पाणी।
सील सिनानी रळमळ हालो, ज्यूं रळ चालै पाणी।
गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ (जी) बोल्या इमरत वाणी।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 179)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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