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क्या कहूँ भाई अब हरि सुख पाई

kya kahun bhai ab hari sukh pai

केशवस्वामी

केशवस्वामी

क्या कहूँ भाई अब हरि सुख पाई

केशवस्वामी

और अधिककेशवस्वामी

    क्या कहूँ भाई अब हरि सुख पाई।

    सकल ही गति मेरी हरि ने चुराई॥

    हरि गुण माला पेरी हूँ मन में।

    हरि के चरन के थीर रहूँ मधुबन में॥

    निशिदिन मन में हरि सु लगाई।

    हरि के भजन सुं प्राण जगाई॥

    हरि सुं निबरी जन सुं मैं बिगरी।

    केशव साही के संग सब बिसरी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 378)
    • संपादक : काका साहेब कालेलकर
    • रचनाकार : केशवस्वामी
    • प्रकाशन : मोतीलाल बनारसीदास
    • संस्करण : 1963
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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