सिरजन हारी की कला, मोसो बरनि न जाई।
बाजीगर ज्युँ खेल रचावे, लीला समझ न आई।
नजर न आवे लीला राचे, अजबो राम रमाई॥
एक बूँद ती जगत रचावे, एक बीज चरनाई।
खुद ही राचे विनासे खुद ही, खूब करे चतराई॥
माया झूठ माया पति साँचो, मन चित की भरमाई।
सैन भगत मायापति अद्भुत, लीला अजब रचाई॥
सृजनहार की कला का बखान मुझसे हो पाना कठिन है। जिस प्रकार बाज़ीगर खेल रचाता है, उसकी बाज़ीगरी की लीला समझ नहीं आती है। वैसे ही इस सृजनहार की लीला भी किसी को समझ नहीं आती। यह सृजनहार नज़र नहीं आता, फिर भी लीला रचाता है। यह राम-रमाई अद्भुत है। एक बूँद से सृष्टि का निर्माण करता है। एक बीज से हरियाली पैदा करता है। यह ख़ुद ही सृष्टि का सृजन करता है तथा फिर उसे नष्ट भी कर देता है। बड़ी चतुराई से लीला रचाता है। यह माया झूठ है। मायापति सच है। यह सब मन और चित्त का भ्रम ही है। सैन भगत कहते हैं—मायापति की लीला अद्भुत है। उसने इसे अद्भुत ढंग से रचाया है। मैं तो इसका वर्णन नहीं कर सकता।
- पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 316)
- संपादक : अशोेक मिश्र
- रचनाकार : संत सैन भगत
- प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
- संस्करण : 2013
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