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प्रेम-समुद्र रूप-रसि गहिरे

prem samudr roop rasi gahire

स्वामी हरिदास

स्वामी हरिदास

प्रेम-समुद्र रूप-रसि गहिरे

स्वामी हरिदास

और अधिकस्वामी हरिदास

    प्रेम-समुद्र रूप-रसि गहिरे, कैसे लागै घाट।

    बेकार्यो दै जानि कहावत, जानिपनो की कहा परी बाट॥

    काहू कौ सर पै सूघो, मारत गाल गली गली हाट।

    कहि ‘हरिदास’ बिरारिहिं, जानौ तको औघट घाट॥

    रूप-रस के अथाह प्रेम-सागर से कोई कैसे किनारे लग सकता है! कोई शारीरिक विकारों का झूठा प्रदर्शन कर ज्ञानी कहलवाता है, पर ज्ञानीपन का क्या यही मार्ग है! ऐसे पाखंडी की उद्देश्यपूर्ति नहीं होती है, चाहे वह गली-गली बाज़ार-बाज़ार में कैसी ही बात बनाता फिरे। श्री हरिदास कहते हैं कि ठाकुर श्री बिहारी जी सब जानते हैं; वे वस्त्र की आड़ में से सबको देख रहे हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 97)
    • रचनाकार : स्वामी हरिदास
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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