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पद-82

pad-82

इतना तो हो नए शहर में

फाँके पर कट जाए रात पर ज़हर कोई खाए घर में

दूध की नदी सूख जाएँ सब, ख़ून हरगिज़ बहे नहर में

लावारिस बच्चे को कहीं छिपाए रहे परिंदा पर में

हर हफ़्ते में कोई प्रेम कहानी लगे सिनेमाघर में

जो कोई छुए तो रोए इतनी कशिश रहे पत्थर में

किसी तरन्नुम में दरवाज़े खुलें और हों बंद कहर में

कहीं हो पर एक आदमी दिखे ज़रूर अजायबघर में

एक पेन्हाई गाय खड़ी हो किसी धार के लिए डगर में

मिन्नत ही मिन्नत तारी हो हर अदीब की बहर बहर में

सबके पौ बारह हों लेकिन कुछ ननु नच कुछ अगर मगर में

आँसू की बिक्री का कोई नया महकमा खुले नज़र में

घोड़े बेच रात जो सोए नींद खुले तीसरे पहर में

कितनों के सपने उठ बैठे अष्टभुजा की खटर पटर में।

स्रोत :
  • रचनाकार : अष्टभुजा शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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