दोऊ भया घुटुरुवन चलत
dou bhaya ghuturuwan chalat
दोऊ भया घुटुरुवन चलत।
हरत दुख ब्रज भूमि कौ, दै मोद दैत्यन दलत॥
अलक बिथुरीं बदन मृगमद, तिलक सोहै भाल।
दृगन अंजन भौंह बिंदुका, अधर रिसत रसाल॥
कंठ बघना चरन नूपुर, किंकिनी कल नाद।
करन पहौंची हृदै भाला, सब्द सुनि अहलाद॥
देख जसुमति जनम अपुनौ, सुफल मान्यौ चाव।
‘रसिक’ पावै कौन हरि कौ, बाल लीला भाव॥
- पुस्तक : गो. हरिराय जी का पद-साहित्य (पृष्ठ 38)
- संपादक : प्रभुदयाल मीतल
- रचनाकार : गोस्वामी हरिराय
- प्रकाशन : साहित्य संस्थान मथुरा
- संस्करण : 1962
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