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नहिं हिंदू, नहिं तुरक हम

nahin hindu, nahin turak hum

भगवत रसिक

भगवत रसिक

नहिं हिंदू, नहिं तुरक हम

भगवत रसिक

और अधिकभगवत रसिक

    नहिं हिंदू, नहिं तुरक हम, नहिं जैनी, अँगरेज।

    सुमन सँवारत रहत नित, कुंज-बिहारी-सेज॥

    कुंज-बिहारी-सेज छाँड़ि, मग दच्छिन डेरो।

    रहै बिलोकति केलि, नाम ‘भगवत अलि' मेरो॥

    श्रीललिता सखि पाय कृपा, सेवत सुख स्यामहिं।

    नहिं काहूँ सों द्रोह, मोह काहू सों है नहिं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 222)
    • रचनाकार : भगवतरसिक
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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