प्रेम बान जाके लगा सो जानैगा
prem ban jake laga so janaiga
प्रेम बान जाके लगा सो जानैगा पीर॥
सो जानैगा पीर काह मूरख से कहिये।
तिल भरि लगै न ज्ञान ताहि से चुप भै रहिये॥
लाख कहै समुझाय बचन मूरख नहिं माने।
तासे कहा बसाय ठान जो अपनी ठानै॥
जोहि के जगत पियार ताहि से भक्ति न आवै।
सतसंगति से बिमुख और के सन्मुख धावै॥
जिन कर हिया कठोर है पलटू धसै न तीर।
प्रेम बान जाके लगा सो जानैगा पीर॥
आत्मलीनता का प्रेम-बाण जिसके हृदय में लगता है, वही इसे समझ सकता है। इस विषय को मूर्ख मनुष्य से कहकर क्या होगा? जिसके दिल में तिल भर भी ज्ञान का प्रभाव नहीं पड़ता है, उससे तो चुप ही होकर रहना चाहिए। लाख प्रकार से समझाकर कहने पर भी ज्ञान की बात मूर्ख नहीं स्वीकारता। जो मोह का हठ पकड़ रखा है उससे अपना क्या वश चलेगा? जिसको संसार के राग-रंग प्रिय हैं उसके मन में भक्ति का प्रवेश नहीं हो सकता। वह सत्संग से दूर रहता है और प्रपंच की तरफ़ दौड़ता है। पलटू साहेब कहते हैं कि जिसका हृदय विषय-वासना तथा अहंकार से कठोर है उसको आत्मज्ञान का तीर नहीं बेध सकता। जिसको आध्यात्मिक उन्नति का प्रेम जगता है, वही इसका मर्म समझ सकता है।
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 59)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
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