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पाहुड़ दोहा-12

pahuD doha 12

मुनि रामसिंह

मुनि रामसिंह

पाहुड़ दोहा-12

मुनि रामसिंह

अज्जु जिणिज्जइ करहुलउ लइ पइं देविणु लक्खु।

जित्थु चडेविणु परममुणि सव्व गयागय मोक्खु॥

करहा चरि जिणगुणथलिहिं तव विल्लडिय पगाम।

विसमी भवसंसारगइ उल्लूरियहि जाम॥

तव दावणु वय भियमडा समदम कियउ पलाणु।

संजमघरहं उमाहियउ गउ करहा णिव्वाणु॥

एक्क जाणहि वट्टडिय अवरु पुच्छहि कोइ।

अहुवियद्दहं हुंगरहं णर भंजंता जोइ॥

वट्ट जु छोडिवि मउलियउ सो तरुवरु अकयत्थु।

रीणा पहिय वीसमिय फलहिं लायउ हत्थु॥

छहदंसणधंधइ पडिय मणहं फिट्टिय भंति।

एक्कु देउ छह भउ किउ तेण मोक्खहं जंति॥

अप्पा मिल्लिवि एक्कु पर अण्णु वइरिउ कोइ।

जेण विणिम्मिय कम्मडा जइ पर फेडइ सोइ॥

जइ वारउं तो तहिं जि पर अप्पहं मणु धरेइ।

विसयहं कारणि जीवडउ णरयहं दुक्ख सहेइ॥

जीव जाणहि अप्पणा विसया होसहिं मज्झु।

फल किं पाकहि जेम तिम दुक्ख करेसहिं तुज्झु॥

विसया सेवहि जीव तुहुं दुक्खहं साहिक एण।

तेण णिरारिउ पज्जलइ हुववहु जेम घिएण॥

हे भव्य! परम देव को लक्ष में लेकर आज ही तू मस्त हाथी को जीत ले कि जिस पर चढ़कर परम मुनि सर्व गमनागमन से छूटकर मोक्षपुरी में पहुँच जाते हैं।

हे मस्तहाथी! हे करभा! इस विषम भवसंसार की गति को जब तक तू उच्छेदन कर डाले, तब तक निजगुण रूपी बाग़ में मुक्तरूप से तप रुपी बेल को तू चर। तेरे बंधन खोल दिए हैं।

जिस पर तपरूपी दामन-लगाम है, व्रतरूपी चौकड़ा है तथा शम-दमरूपी पलाण है—ऐसे ऊँट पर बैठकर सयंम धर निर्वाण को गए।

एक तो स्वयं मार्ग को जानते नहीं और दूसरे किसी से पूछते भी नहीं—ऐसे मनुष्य वन-जंगल तथा पहाड़ों में भटक रहे हैं, उनको तू देख।

जो तरुवर रास्ते को छोड़कर दूर फला-फूला है वह बेकार है। तो कोई थका हुआ पथिक वहाँ विश्राम करता है और उसके फलों को कोई हाथ लगाता है।

प्रदर्शन के धंधे में पड़े हुए अज्ञानियों के मन को शांति मिली। एक देव के छह भेद किए, इससे वे मोक्ष नहीं पा जाते।

एक अपनी आत्मा को छोड़कर अन्य कोई तेरा वैरी नहीं है, अतः हे योगी! जिस भाव से तूने कर्मों का निर्माण किया है, उस परभाव को तू मिटा दे।

यद्यपि मैं रोकता हूँ, तो भी मन पर में जाता है। वह भी अपने में विषय को धारण करता है, परंतु आत्मा को धारण नहीं करता। मन के द्वारा विषयों में भ्रमण करने के कारण जीव नरकों के दुख सहता है।

हे जीव! तू ऐसा मत जान कि ये विषय मेरे हैं और मेरे रहेंगे। अरे, ये तो किम्पाक फल की तरह तुझे दुख ही देंगे।

हे जीव! तू विषयों का सेवन करता है, किंतु वे तो दुख ही देने वाले हैं। जैसे घी डालने से अग्नि प्रज्वलित होती है, वैसे विषयों के द्वारा तू बहुत जल रहा है।

स्रोत :
  • पुस्तक : पाहुड़ दोहे (पृष्ठ 28)
  • संपादक : हरिलाल अमृतलाल मेहता
  • रचनाकार : मुनि राम सिंह
  • प्रकाशन : अखिल भारतीय जैन युवा फ़ेडरेशन
  • संस्करण : 1992
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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