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कवित्त

वर्णिक छंद। चार चरण। प्रत्येक चरण में सोलह, पंद्रह के विराम से इकतीस वर्ण। चरणांत में गुरू (ऽ) अनिवार्य। वर्णों की क्रमशः आठ, आठ, आठ और सात की संख्या पर यति (ठहराव) अनिवार्य।

रीतिकालीन कवि। काव्य-कला में निपुण। छंदशास्त्र के विशद निरूपण के लिए स्मरणीय।

संत कबीर के औरस पुत्र और शिष्य।

संत यारी के शिष्य। आध्यात्मिक अनुभव को सरल भाषा में प्रस्तुत करने वाले अलक्षित संत-कवि।

भरतपुर नरेश सुजानसिंह के आश्रित कवि। काव्य में वर्णन-विस्तार और शब्दनाद के लिए स्मरणीय।

रीतिकालीन अलक्षित कवि। रीति ग्रंथ 'सुंदर शृंगार' विशेष उल्लेखनीय।

1596 -1689

दादूदयाल के प्रमुख शिष्यों में से एक। अद्वैत वेदांती और संत कवियों में सबसे शिक्षित कवि।

1734

भक्त कवि नागरीदास की बहन। चलती हुई सरल भाषा में भक्ति और वीर काव्य की रचयिता।

1593

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। ऋतुवर्णन और ललित पदविन्यास के लिए प्रसिद्ध। शृंगार के अतिरिक्त भक्तिप्रेरित उद्गारों के लिए भी स्मरणीय।

रीतिकालीन कवि, टीकाकार और गद्यकार।

प्राचीन काव्य के ख्यातिप्राप्त टीकाकार और अलक्षित कवि।

'निंबार्क संप्रदाय' के आचार्य बिहारीदास के शिष्य। सत्रहवीं सदी में वर्तमान।

1875

परंपरागत आदर्श पर विशेष बल देने वाली भारतेंदु युग की कवयित्री।

1815 -1881

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

रीतिकालीन अलक्षित कवि। महाभारत के पद्यानुवादक।

1984

नई पीढ़ी की कवयित्री।

रीतिकाल के आचार्य कवियों में से एक। भरतपुर नरेश प्रतापसिंह के आश्रित। भावुक, सहृदय और विषय को स्पष्ट करने में कुशल कवि।

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