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कवित्त

वर्णिक छंद। चार चरण। प्रत्येक चरण में सोलह, पंद्रह के विराम से इकतीस वर्ण। चरणांत में गुरू (ऽ) अनिवार्य। वर्णों की क्रमशः आठ, आठ, आठ और सात की संख्या पर यति (ठहराव) अनिवार्य।

भगवंतराय खीची के दरबारी कवि। शृंगार की अपेक्षा आश्रयदाता के वर्णन पर ही अधिक ज़ोर। 'रसकल्लोल' नामक रीतिग्रंथ चर्चित।

श्रीहित हरिवंश की शिष्य-परंपरा के कला-कुशल और साहित्य-मर्मज्ञ भक्त कवि।

रीतिकालीन कवि। सर्वांग निरूपक। पावस-ऋतु-वर्णन के लिए उल्लेखनीय।

1886 -1928

आधुनिककाल के नीति कवि। काव्य-भाषा ब्रजी। अल्पज्ञात कवि।

भारतेंदुयुगीन गाँधीवादी कवि।

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