कवित्त
वर्णिक छंद। चार चरण। प्रत्येक चरण में सोलह, पंद्रह के विराम से इकतीस वर्ण। चरणांत में गुरू (ऽ) अनिवार्य। वर्णों की क्रमशः आठ, आठ, आठ और सात की संख्या पर यति (ठहराव) अनिवार्य।
भगवंतराय खीची के दरबारी कवि। शृंगार की अपेक्षा आश्रयदाता के वर्णन पर ही अधिक ज़ोर। 'रसकल्लोल' नामक रीतिग्रंथ चर्चित।