Font by Mehr Nastaliq Web

कवित्त

वर्णिक छंद। चार चरण। प्रत्येक चरण में सोलह, पंद्रह के विराम से इकतीस वर्ण। चरणांत में गुरू (ऽ) अनिवार्य। वर्णों की क्रमशः आठ, आठ, आठ और सात की संख्या पर यति (ठहराव) अनिवार्य।

1693 -1749

जैन कवि, उपदेशक एवं प्रवचनकार।

1649 -1703

रीतिकालीन जैन कवि। संगीत, ज्योतिष और हिंदी, गुजराती, बंगला और फ़ारसी जैसी कई भाषाओं के जानकार।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

1670 -1772

रीतिकाल के सुपरिचित कवि। काव्य में वीर रस की प्रधानता।

1551 -1636

आदिग्रंथ को सबसे पहले इन्होंने लिपिबद्ध किया। संस्कृत, ब्रजी, पंजाबी और फ़ारसी के ज्ञाता। इनके द्वारा हिंदी भाषा में रचित कवित-सवैयों को गुरु अर्जुनदेव ने 'गुरुबानी की कुंजी' कहा है।

रीतिबद्ध के आचार्य कवि। काव्यांग-निरूपण में सिरमौर। शृंगार-निरूपण के अतिरिक्त नीति-निरूपण के लिए भी उल्लेखनीय।

1713 -1763

समय : 18वीं सदी। बावरी पंथ ग़ाज़ीपुर शाखा के संत गुलाल साहब के शिष्य। चमत्कार-विरोधी। नाम-स्मरण के सुगम पथ के राही।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए