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कवित्त

वर्णिक छंद। चार चरण। प्रत्येक चरण में सोलह, पंद्रह के विराम से इकतीस वर्ण। चरणांत में गुरू (ऽ) अनिवार्य। वर्णों की क्रमशः आठ, आठ, आठ और सात की संख्या पर यति (ठहराव) अनिवार्य।

1746

रीतिकालीन आचार्य कवि। काव्यांग विवेचन और नायिकाभेद के लिए स्मरणीय।

रीतिकालीन कवि। साहित्य शास्त्र के प्रौढ़ निरूपण के लिए विख्यात।

1680

ब्रजभाषा के सरस कवि। 'रस चंद्रोदय' नामक ग्रंथ के लिए ख्यात।

1555 -1617

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। काव्यांग निरूपण, उक्ति-वैचित्र्य और अलंकारप्रियता के लिए स्मरणीय। काव्य- संसार में ‘कठिन काव्य के प्रेत’ के रूप में प्रसिद्ध।

1578

भक्तिकाल के अलक्षित कवि।

रीतिकाल। नायिकाभेद और नख-शिख वर्णन में सिद्धहस्त और सहृदय कवि।

रीतिकालीन नीति कवि। अलक्षित, लेकिन कविता सरस और सुंदर लिखी है।

पूरा नाम जुगलकिशोर। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के आश्रित कवि। लालित्यपूर्ण कविता और अनूठे शब्द-चयन के लिए ख्यात।

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