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पाहन करेजो तिमि हाथ क्यों न होत नाथ

pahan karejo timi hath kyon na hot nath

अर्जुनदास केडिया

अर्जुनदास केडिया

पाहन करेजो तिमि हाथ क्यों न होत नाथ

अर्जुनदास केडिया

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    पाहन करेजो तिमि हाथ क्यों होत नाथ!

    काटत अनाथ-माथ बचन-बिहीनों के।

    ब्याधन ज्यौं छनिक सवाद लौं बिना-पराध,

    मुरगे मयूर अज मेष मृग मीनों के॥

    गरल-गिरीस-गाथ जाने बिन बन्हि-बात,

    देत उदाहरन तपस्वी तनु-खीनों के।

    पिंड-बलिदान ओट कोटिन करैं ये पाप,

    मोट यह माथे बँधै मानस-मलीनों के॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 472)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : अर्जुनदास केडिया
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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