तूही धन तू ही प्रान तोही में हरि को मन
tuhi dhan tu hi pran tohi mein hari ko man
चिंतामणि
Chintamani
तूही धन तू ही प्रान तोही में हरि को मन
tuhi dhan tu hi pran tohi mein hari ko man
Chintamani
चिंतामणि
और अधिकचिंतामणि
तूही धन तू ही प्रान तोही में हरि को मन,
तेरे ही रिझाइबे की रीति में प्रवीन हैं।
‘चिंतामनि’ चिंता नित तेही रहै रात दिन,
तेरे ही विरह खिन-खिन होत खीन हैं॥
भूलि हू न कीजै ठकुराइनी इतेक हठ,
छोड़ दीजे तेरे बुझ ठाकुर अधीन हैं।
तूही पीकै नैन अरविंदन की इंदिरा औ,
पीके नैन तेरे तनु पानिप के मीन हैं॥
- पुस्तक : हिंदी काव्य गंगा (पृष्ठ 211)
- संपादक : सुधाकर पांडेय
- रचनाकार : चिंतामणि
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा
- संस्करण : 1990
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