ताती होति छाती छिनु जूड़ियौ है जाति कछू
tati hoti chhati chhinu juDiyau hai jati kachhu
ताती होति छाती छिनु जूड़ियौ है जाति कछू,
ताती सीरी राती पीरी बूझि न परति है।
‘आलम’ कहै हो कान्ह कौन बिथा जानों बाकी,
मौन मई काहू की न कनि हू करति है।
आगि सीझंवाति है जू ओरो सी बिलाति है जू,
छिनु हू न देखे सुधि बुधि बिसरति है।
अँसुवनि भीजै औ पसीजै त्यौं त्यौं छीजै वाल,
सोने ऐसी लोनी देह लोन ज्यों गरति है॥
- पुस्तक : आलम-केलि (पृष्ठ 44)
- संपादक : भगवानदीन
- रचनाकार : आलम
- प्रकाशन : उमाशंकर मेहता
- संस्करण : 1922
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