सुदामै रंक राज दै, बिभीषन कों लंक दै
sudamai rank raj dai, bibhishan kon lank dai
छत्रसाल
Chhatrasal
सुदामै रंक राज दै, बिभीषन कों लंक दै
sudamai rank raj dai, bibhishan kon lank dai
Chhatrasal
छत्रसाल
और अधिकछत्रसाल
सुदामै रंक राज दै, बिभीषऩ कों लङ्क दै,
ध्रुव कों अटल पद दैकैं फेरि लैहौ, जू?
कहै छत्रसाल, जाहिँ राख्यौ निज सेवा काज,
ताहिँ द्वार-द्वार फेरि कैसे जान दैहौ, जू?
नेति-नेति गावैं बेद, जथामति गावत हौं,
आन-गुन गायबे कों कौन भाँति सैहो, जू?
सबही को देत हौ औ सबही की सुध लेत,
मेरी बार देत कहा कान मूँदि रैहौ जू॥
- पुस्तक : छत्रसाल-ग्रंथावली (पृष्ठ 10)
- संपादक : वियोगी हरि
- रचनाकार : छत्रसाल
- प्रकाशन : श्रीछत्रसाल-स्मारक-समिति, पन्ना, मध्य प्रदेश
- संस्करण : 1926
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