एकै कहें अमल कमल सुख सीता जूको
ekai kahen amal kamal sukh sita juko
एकै कहें अमल कमल सुख सीता जूको,
एकै कहैं चंद्र सम आनंद को कंद री।
होय जो कमल तो रयनि में न सकुचै री,
चंद्र जो तो बासर न होनी दुति मंद री॥
बासर ही कमल रजनि ही में, चंद्र,
मुख बाहर हू रजनि बिराजै जगबंद री।
देखे मुख भावै अनदेखई कमल चंद्र,
ताते मुख मुखै सखी कमलै न चंद री॥
- पुस्तक : केशव कौमुदी (पृष्ठ 147)
- संपादक : लाला भगवानदीन
- रचनाकार : केशवदास
- प्रकाशन : राम नारायण लाल, इलाहाबाद
- संस्करण : 1947
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