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श्यामघन देह सो मैं चातक ज्यों नेह बांध्यो

shyamaghan deh so main chatak jyon neh bandhyo

हृदयराम

हृदयराम

श्यामघन देह सो मैं चातक ज्यों नेह बांध्यो

हृदयराम

और अधिकहृदयराम

    श्यामघन देह सो मैं चातक ज्यों नेह बांध्यो,

    देह प्रेम बूंदहों जपैया ताही नाम को।

    चरण सरोज रस भरे ताको भयो अलि,

    जा दिन पराग पाऊँ ताही छिन काम को॥

    राम मुख धुन सुन भयो मृग ताही छिन,

    रूप सिंधु मीन डर है काल घाम को।

    वै उदार राय हैं मैं भक्ति भीख माँगो,

    वै तो रामचंद्र चंद्रमा चकोर मन राम को॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री हनुमन्नाटक (पृष्ठ 7)
    • रचनाकार : हृदयराम
    • प्रकाशन : वेंकटेश्वर छापाखाना, मुंबई
    • संस्करण : 1900

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