देखि राम रूप सिय सखिन समेत मोही
dekhi ram roop siy sakhin samet mohi
रामगुलाम द्विवेदी
Ramgulam Dwivedi
देखि राम रूप सिय सखिन समेत मोही
dekhi ram roop siy sakhin samet mohi
Ramgulam Dwivedi
रामगुलाम द्विवेदी
और अधिकरामगुलाम द्विवेदी
देखि राम रूप सिय सखिन समेत मोही,
समुझि पिता को पन मन दुख भयो है।
कहाँ कर कोमल कमल रघुनंदजू के,
कहाँ धनु कुलिस कठोर निरभयो है॥
धीरज न होत क्यों हूँ बिकल विदेह सुता,
विरह संकोच सोच ताप तन तयो है।
वदत गुलामराम जानत सुजान राम,
जानकी सनेह-रंग चितपट रयो है॥
- पुस्तक : कवित्त-रामायण (पृष्ठ 5)
- संपादक : महावीरप्रसाद मालवीय वैद्य
- रचनाकार : रामगुलाम द्विवेदी
- प्रकाशन : बेलविडियर प्रेस, प्रयाग
- संस्करण : 1924
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