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कोकिल किलक थानी सुनि सुनि सानि मानी,

kokil kilak thani suni suni sani mani,

आलम

आलम

कोकिल किलक थानी सुनि सुनि सानि मानी,

आलम

और अधिकआलम

    कोकिल किलक थानी सुनि सुनि सानि मानी,

    यही जानि तोपै सीखि सुरहिं सुधार्यो है।

    राम हूँ की बानी ताकि चंपाऊ उजार गयो,

    यहै चेति चित हू ते भौंरनि उतार्यो हे।

    ‘आलम’ कहै हो पूरो पुन्य को सुहायो कोल,

    मुख की निकाई हेरि हिमकर हार्यो है।

    रूप रयो भयो नाही रीझि गयो मन माहीं,

    तो पर ह्वै मार आपा बारि फेरि डार्यो है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : आलम-केलि (पृष्ठ 7)
    • संपादक : भगवानदीन
    • रचनाकार : आलम
    • प्रकाशन : उमाशंकर मेहता
    • संस्करण : 1922

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