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केश के समूह नै, कलापी सौं कलह कीन्हों

kesh ke samuh nai, kalapi saun kalah kinhon

गिरिधर पुरोहित

गिरिधर पुरोहित

केश के समूह नै, कलापी सौं कलह कीन्हों

गिरिधर पुरोहित

केश के समूह नै, कलापी सौं कलह कीन्हों,

सबै छबि छीन लीनी, कबरी करनि सौं।

नैन के प्रचार नै, गंवार मृग छौना किये,

खंजन खिसाइ रहे, आछी प्रसरनि सौं।

पाननि सौं पूर्यो मुख, चंद कौं चुनौति देति,

कहै गिरिधारी गयो, अंबर डरनि सौं।

दिन में के देवताऊ, दीन ह्वै चरन गहै,

कंधरा की ठरनि, चरन की धरनि सौं॥

स्रोत :
  • पुस्तक : शृंगारमंजरी (पृष्ठ 68)
  • रचनाकार : गिरिधर पुरोहित
  • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
  • संस्करण : 1982

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