गिरि-धर गिरि-चर प्रभुवर-उर-घर
giri dhar giri char prabhuwar ur ghar
गिरि-धर गिरि-चर प्रभुवर-उर-घर,
रघुवर-चर-वर, जय जय जय-कर।
प्रभु-पद-रज-धर, जय-धुज-कर-धर,
जय जय जसधर, जय भव-भय-हर॥
जयति बिजय-धुज छतहिँ करहु कुज,
जयति जयति अज! जय मम मन भर।
जय जय पवन-तनय त्रिभुवन कह,
जय प्रनमत सब पद सिर धर-धर॥
- पुस्तक : छत्रसाल-ग्रंथावली (पृष्ठ 57)
- संपादक : वियोगी हरि
- रचनाकार : छत्रसाल
- प्रकाशन : श्रीछत्रसाल-स्मारक-समिति, पन्ना, मध्य प्रदेश
- संस्करण : 1926
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