गहरी गुराई त प्रथम चूर चामीकर
gahri gurai t pratham choor chamikar
कवींद्र (उदयनाथ)
Kavindr (Udaynath)
गहरी गुराई त प्रथम चूर चामीकर
gahri gurai t pratham choor chamikar
Kavindr (Udaynath)
कवींद्र (उदयनाथ)
और अधिककवींद्र (उदयनाथ)
गहरी गुराई त प्रथम चूर चामीकर,
चंपक कै ऊपरि बहुरि पाम रौप्यौ है।
तीसरे अखिल अरविंद आभा बस करि,
हँसै छड़िता को हाइ तो पद में तोप्यौ है॥
भनत कविंद तेरे मान समे सौते कहा,
सुर-बनितान कौ गुमान जात लोप्यो है।
आली! आज मेरे जानि, ऐठ भरौ मुख—
भौंहै तान, सौहै री, कलानिधि पै कोप्यौ है॥
- पुस्तक : रीति शृंगार (पृष्ठ 145)
- संपादक : डा० नगेंद्र
- प्रकाशन : साहित्य-सदन
- संस्करण : 1963
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