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बैठी विधु बदनी कृसोदरी दरीची बीच

baithi widhu badani krisodri darichi beech

पजनेस

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बैठी विधु बदनी कृसोदरी दरीची बीच

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    बैठी विधु बदनी कृसोदरी दरीची बीच,

    खींचि पी निसंक परजंक पर लै गयो।

    भने पजनेस भुज लपटि लला के लगी,

    झपटि सुनीवी कर जवन समै गयो॥

    भोरो-भोरो गोरो मुख सोहै रति भीत पीत,

    रति क्रम रक्त रति अंत सो रजै गयो।

    मानो पोखराज तें पिरोजा भयो मानिक भो,

    मानिक भये पै नील मनि नग है गयो॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 381)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : पजनेस
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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