यह प्रेम-गीत गाने का समय है
ye prem geet gane ka samay hai
हमारे बीच की भाषा मौन है
चुप्पी ज़ुबान है
बंद आँखों से सुनती हूँ
तुम कहते हो कुछ शब्द
जो प्रेम में आकंठ हैं
वक़्त ढूँढ़ते रहे हम ताकि हो सके संवाद
अधूरेपन को किया जा सके पूरा
कहना आसान था
चुप रहना ज़्यादा सहज
तस्वीर के एकांत में हम करते रहे बातें
घुप् अँधेरा हो तो दिखता है तुम्हारा हाथ
दूर बजता है कोई राग
पुकारता है कोई नाम
यह प्रेम-गीत गाने का समय है
तुम करते रहे समाज सुधार की बातें
आधी-आधी रात तक जागते रहे
पढ़ते रहे फ़ूको का दर्शन
गर इजाज़त हो
तुम्हारे सीने की ऊसर ज़मीन पर
प्रेम बीज बोना चाहती हूँ
हमने बहुत दिनों तक सुबह होने का इंतज़ार किया है।
- रचनाकार : ज्योति रीता
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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