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यथार्थ इन दिनों

yatharth in dinon

मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल

यथार्थ इन दिनों

मंगलेश डबराल

और अधिकमंगलेश डबराल

     

    मैं जब भी यथार्थ का पीछा करता हूँ
    देखता हूँ वह भी मेरा पीछा कर रहा है मुझसे तेज़ भाग रहा है
    घर हो या बाज़ार हर जगह उसके दाँत चमकते हुए दिखते हैं
    अँधेरे में रोशनी में
    घबराया हुआ मैं नींद में जाता हूँ तो वह वहाँ मौजूद होता है
    एक स्वप्न से निकलकर बाहर आता हूँ
    तो वह वहाँ भी पहले से घात लगाए हुए रहता है

    यथार्थ इन दिनों इतना चौंधियाता हुआ है
    कि उससे आँखें मिलाना मुश्किल है
    मैं उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ता हूँ
    तो वह हिंस्र जानवर की तरह हमला करके निकल जाता है
    सिर्फ़ कहीं-कहीं उसके निशान दिखाई देते हैं
    किसी सड़क पर जंगल में पेड़ के नीचे
    एक झोपड़ी के भीतर एक उजड़ा हुआ चूल्हा एक ढही हुई छत
    छोड़कर चले गए लोगों का एक सुनसान

    एक मरा हुआ मनुष्य इस समय
    जीवित मनुष्य की तुलना में कहीं ज़्यादा कह रहा है
    उसके शरीर से बहता हुआ रक्त
    शरीर के भीतर दौड़ते हुए रक्त से कहीं ज़्यादा आवाज़ कर रहा है
    एक तेज़ हवा चल रही है
    और विचारों, स्वप्नों, स्मृतियों को 
    फटे हुए काग़ज़ों की तरह उड़ा रही है
    एक अँधेरी-सी काली सी चीज़
    हिंस्र पशुओं से भरी हुई एक रात चारों ओर इकठ्ठा हो रही है[1]
    एक लुटेरा एक हत्यारा एक दलाल
    आसमानों पहाड़ों मैदानों को लाँघता हुआ आ रहा है
    उसके हाथ धरती के मर्म को दबोचने के लिए बढ़ रहे हैं

    एक आदिवासी को उसके जंगल से खदेड़ने का ख़ाका बन चुका है
    विस्थापितों की एक भीड़
    अपनी बची-खुची गृहस्थी को पोटलियों में बाँध रही है
    उसे किसी अज्ञात भविष्य की ओर ढकेलने की योजना तैयार है
    ऊपर आसमान में एक विकराल हवाई जहाज़ बम बरसाने के लिए तैयार हैं
    नीचे घाटी में एक आत्मघाती दस्ता
    अपने सुंदर नौजवान शरीरों पर बम और मिसाइलें बाँधे हुए है
    दुनिया के राष्ट्राध्यक्ष अंगरक्षक सुरक्षागार्ड सैनिक अर्धसैनिक बल
    गोलियों बंदूक़ों रॉकेटों से लैस हो रहे हैं
    यथार्थ इन दिनों बहुत ज़्यादा यथार्थ है
    उसके शरीर से ज़्यादा दिखाई दे रहा है उसका रक्त।
    ________________________________
    [1] निराला की एक कविता पंक्ति ‘शिशिर की शर्वरी हिंस्र पशुओं से भरी’ का संदर्भ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंगलेश डबराल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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