ख़ुद से पूछे गए सवाल
khud se puchhe gye sawaal
क्या मतलब है मुस्कराहट का
और हाथ मिलाने का?
स्वागत के क्षण में
क्या तुम कभी दूर नहीं होतीं,
उतनी ही जितना
एक पुरुष दूसरे पुरुष से
जब कोई लेता है अप्रीतिकर फ़ैसला
पहली नज़र का?
क्या तुम हर आदमी के हिस्से को
खोलती हो पुस्तक की तरह
उसके छापे के साँचे में नहीं
न ही उसके आकार में
तुम रोमांच खोजती हो?
क्या यह तय है और वह सब कुछ है
जो तुम लोगों से खोज निकालती हो?
एक टालमटोल करता शब्द
तुमने उत्तर की तरह दिया,
ईमानदारी के बजाय एक रंगबिरंगा चुटकला—
तुम नुक़सान की कैसे गिनती करोगी?
अनहुई मित्रताएँ,
बर्फ़-विजड़ित संसार।
क्या तुम जानती हो कि मित्रता को दरकार है
सहरचे जाने की प्रेम की तरह?
कोई इस कर्कश चेष्टा में
गति के साथ नहीं चल पाता।
और क्या मित्रों की ग़लतियों में
तुम्हारा कोई दोष नहीं था?
किसी ने शिकायत की और सलाह माँगी।
कितने आँसू सूख चुके
तुम्हारे मदद में आने से पहले?
तुम्हारी साझी ज़िम्मेदारी है
सहस्राब्दी की ख़ुशहाली के लिए—
क्या तुम निरादर नहीं करती हो
एक अकेले क्षण
एक आँसू और एक चेहरे की सिकुड़न का?
क्या तुम कभी भी किनारा नहीं करतीं
किसी दूसरे के संघर्ष से?
एक मेज़ पर एक ग्लास था
और किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया,
जब तक वह गिर नहीं पड़ा
बेढंगी हरकत के धक्के से।
क्या लोगों में दूसरे लोगों के लिए
चीज़ें होती हैं सरलतम ढंग से?
- पुस्तक : कोई शीर्षक नहीं (पृष्ठ 5)
- रचनाकार : कवयित्री के साथ अनुवादक अशोक वाजपयी और रेनाता चेकाल्स्का
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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