चिलम में चिंगारी और चरख़े पर सूत
chilam mein chingari aur charkhe par soot
संदीप निर्भय
Sandeep Nirbhay
चिलम में चिंगारी और चरख़े पर सूत
chilam mein chingari aur charkhe par soot
Sandeep Nirbhay
संदीप निर्भय
और अधिकसंदीप निर्भय
मेरे बच्चो!
अपना ख़याल रखना
आधुनिकता की कुल्हाड़ी
काट न दे तुम्हारी जड़ें
जैसे मोबाइलों ने
लोक-कथाओं और बातों के पीछे
लगने वाले हँकारों को काट दिया है—
जड़ों सहित
वर्तमान के ऊँट पर भविष्य का कजावा रख
भतूळिया1 को छकाते
आँधियों से लड़ते हुए
करना है तुम्हें रेगिस्तान का सफ़र
किलकारियाँ मारते हुए दौड़ो बेतहाशा
लूटो पंतगें पर कभी तितलियों के रंग
चिड़ियों की उड़ान
और चरवाहों की बीड़ी मत छीनना
जब गीली मिट्टी से तुम
बना रहें होंगे घरौंदे
तो दादी के लिए चश्मा
दादा के लिए लाठी बनाना मत भूलना
गिल्ली-डंडा खेलते बखत
लोकतंत्र के डंडे से
ऐसे उछालनी हैं गिल्लियाँ
जैसे उछाला करते थे हमारे दादा-पड़दादा
कि तानाशाह के ठहाके रुलाई में बदल जाएँ
स्कूल से घर लौटते ही जिस तरह
फेंकते हो तुम चप्पलें या जूते
उस तरह फेंकते हैं वे वादे
उन वादों को
तर्कों या विचारों के गोफन2 में डाल
फेंकना हैं तुम्हें ज़ोर-से ख़ूँख़ार जानवरों के पीछे
क़लम और अहिंसा के पाठ छोड़ बच्चो,
कभी मत थामना झंडे
झंडे थमाकर वे
हथियार थमाने की साज़िश रच रहे हैं दिन-रात
जीवन की पाटी पर अनुभवों की खड़िया से
बनानी हैं तुम्हें बुद्ध जैसी आँखें
सुर्ख़ाब जैसी पाँखें
बापू जैसी मुस्कान
माँ जैसी गौर और बाबा जैसा ईसर
भले ही तुम्हें कंधों पर बेगारी ढोनी पड़े
भले ही तुम्हें भारतीय रेल की बोगी में
खाने पड़ें गाल पर थप्पड़
पर बंजर ज़मीन पर
रोपते, सींचते रहना है प्रेम के बिरवे
अगली पीढ़ी के लिए
बचाए रखनी है चिलम में चिंगारी और चरख़े पर सूत।
- रचनाकार : संदीप निर्भय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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