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उनकी पत्नियाँ

unki patniyan

अविनाश मिश्र

अविनाश मिश्र

उनकी पत्नियाँ

अविनाश मिश्र

और अधिकअविनाश मिश्र

    वे ही विवश करती हैं किताबें बेचने पर

    वे ही बताती हैं कि क्या सबसे ज़रूरी है आँखों के लिए

    वे ही धकेलती हैं मेरे बंधुओं को

    होम्योपैथ और ज्योतिष के जड़ संसार में

    वे ही कहती हैं कि आज से चाय बंद और कल से अख़बार

    वे ही ईश्वर को महत्त्वपूर्ण बना देती हैं

    वे ही मूर्खताओं को

    मेरे बंधु थक कर अपना व्यतीत याद करते हैं

    यह एक विकृत स्मृतिलोक का लक्षण है

    जो मौजूद को गुज़र चुके की तरह

    बरतने के लिए उकसाता है

    जैसे अनगढ़ता स्वयं चुनती है अपनी बनावट

    वैसे ही इस सारी घृणित प्रक्रिया से गुज़रते हुए

    मैं अकेलेपन को दूर करने के लिए

    केवल एक नौकर रखूँगा

    जो मुझे लूटकर भागेगा एक दिन

    और अँग्रेज़ी का बड़ा कवि बनेगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अविनाश मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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